परिवार ही सबकुछ होता है..! परिवार नही तो कुछ भी नही..!
परिवार... माँ, बाप,भाई बहन, पत्नी, बच्चे और अच्छे दोस्त. किसी भी व्यक्ति के जीवन मे इन रिश्तो की एहमियत बहुत ज्यादा होती है ऐसा हम सभी मानते हैं. अगर इनमे से कोई रिश्ता दूर हो, ना हो तो जिंदगी यह ज़िन्दगी नही रहती. अक्सर यह देखा गया है के लाखों कमाने वाले लोगो के पास माँ बाप, अच्छे दोस्त ना होने पर वह कितनी असहनीय ज़िदंगी जीते है. उनके पास पैसा तो बहुत होता है लेकिन उस पैसे का सुख लेनेके लिए उस व्यक्ति के पास कोई नही होता. फेसबुक और उपरी तौर पर तो हजारों दोस्त होते है लेकिन वह जब अपने आप को अकेले में देखता है तो सच कहता हूँ, कोई चीज़ मायने नही रखती.
ज़िन्दगी में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे करीबी रिश्ता होता हैं माँ बाप का...माँ बाप अपने बच्चों को पैदा होने से लेकर जबतक वह दुनिया से चले नही जाते तबतक प्यार करते है. बचपन मे बच्चा चाहे हज़ार गलतियां करे लेकिन मा बाप कभी बच्चों को दूर नही करते. उनका गुस्सा भी बच्चों की भलाई के लिए होता है. वह बच्चों की हर ख्वाहिश पूरी हो इसलिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देते है. अपनी खुशियां, अपने सपने और अपना बचा हुवा सारा जीवन वह बच्चों के लिए ही जीते है. मैं समझता हूँ के मा बाप का जितना अधिकार अपने बच्चों पर होता है उतना किसीका भी नही होता है और न ही होना चाहिए. क्योंकि उनकी वजह से हम यह दुनिया देख रहे है,उनकी वजह से हम जिंदा है, बच्चा बड़ा होकर चाहे जितनी भी ऊंचाई छू ले वह सिर्फ और सिर्फ उनके मा बाप के त्याग,समर्पण और प्यार का नतीजा होता है ऐसा मैं मानता हूँ. और इसलिए बच्चा चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो वह मा बाप से छोटा ही होता है और होना भी चाहिए. अगर हम गलती करते है तो उन्हें पूरा हक्क है के वह हमें सही रास्ता बताये. ठीक वैसे ही जैसे बचपन मे हम कोई गलती करते थे तब हमें डांटते थे और फिर उससे कई ज्यादा प्यार भी करते थे. लेकिन विडम्बना यह है के बच्चे जैसे ही बड़े होते है,कमाने लगते है,शादी करते है वह अपने बूढ़े मा बाप को भूल जाते है.(अपवाद छोड़कर) बच्चे जैसे जैसे बड़े होने लगते है उन्हें अपने माँ बाप बोझ लगने लगते है,फिर उनकी बातें, उनकी डांट, उनका प्यार सारि बाते बच्चो को ढकोसले लगती है और वह हमेशा कोई न कोई रास्ता ढूंढने लगते है जिससे वह बूढे मा बाप का पीछा छुड़ा सके.
कैसी विडंबना है ना, जिन माँ बाप ने यह ज़िदंगी दी, अपना खून पसीना एक कर बच्चो को पढ़ाया लिखाया, जिंदगी जीने के काबिल बनाया, अपनी सारी खुशिया और जिंदगी बच्चो के नाम कर दी और वही बच्चे जब बड़े होते है, एक दिन अपने माँ बाप को छोड़कर चले जाते है.वह यह नही सोचते के बुढ़ापे में उनको हमारी जरूरत सबसे ज्यादा होती है,वह यह क्यों नही सोचते के अगर माँ बाप का आशीर्वाद हमारे ऊपर ना हो तो कोई सुख सुख नही होता. हम जब थक कर घर आते है तब माँ की प्यार भरी आवाज "बेटा तक गया होगा ना, रुक मैं तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूँ" कहने वाली वह आवाज अगर घर में न गूंजे तो वह घर घर कैसा? बच्चों की पसंद का खाना वह खा सके इसलिए माँ कितने जतन करती हैं. हम यह क्यों भूल जाते है के जब खाने के लिए कुछ नही होता तब मा बाप भूखे रहकर अपने बच्चों का पेट भरते हैं. अगर घर मे पिताजी का कुर्सी पर बैठ कर न्यूज़ चेंनल में कोई न्यूज़ देखकर यह कहना " बेटे गाड़ी सम्भल कर चलाना देख कैसे वह एक्सीडेंट हुवा है tv पर बात रहे है". उनका हमारे लिए फिक्र करना यह हम कहासे लाये…? बाहर से कुछ लाना हो और बड़ा/छोटा भाई न हो जिसे हम कहे " भाई मेरे गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो गया, तेरी गाड़ी आज के लिए ले जाता हूँ" कहना. बहन का हाथ मे चाय का कप लाकर रिटर्न में उसके खर्चे के लिए पैसे पूछना... अगर यह सब घर मे न हो तो कोई घर घर नही होता. कोई सुख यह सुख नही होता ऐसा मैं मानता हूँ. बच्चे आखिर क्यों भूल जाते के परिवार का साथ, परिवार का सुख ही ज़िदंगी की सबसे बड़ी भेंट है. हम यह क्यों भूल जाते है के अगर माँ बाप ने हमें बनाया है तो उनका हमपर हक्क भी उतना ही बनता है, हम यह क्यों भूल जाते है की हमारी ज़िदंगी में जीत हो उसलिये माँ बाप हर रोज हारते थे, हारते रहते है..! उनकी बच्चो से क्या अपेक्षाएं रहती हैं? प्यार के दो शब्द… फिक्र की दो बातें..! शाम को जब घर आते है तब उनके बेटे/बेटी से सिर्फ यह सुनना के “ माँ/पिताजी, खाना खाया के नही, आओ साथ मे बैठ कर खाते हैं..! एक बाप की सिर्फ यही अपेक्षा रहती है के उसका बेटा/बेटी उसके पास आये और कहे “पिताजी लाइये मैं आपका चश्मा ठीक करके लाता हूँ”. एक माँ की सिर्फ यही आशा रहती हैं के उसका बेटा/बेटी उसके करीब बैठे और उससे दो प्यार की बाते करे. और अगर हम उन्हें यह भी नही दे सकते तो हमारे जीवन का क्या अर्थ हैं…? क्या हासिल करेंगे वह बच्चे जो अपने बूढ़े माँ बाप की सेवा नही कर सकते, उनका सहारा नही बन सकते. क्या जवाब देंगे हम अपने आप को जब हम आईने के सामने खड़े होकर खुद से यह सवाल करेंगे के तुमने अपने परिवार के लिए क्या किया? क्या जवाब होगा हमारे पास जब दोस्त अपनी दोस्ती की दुहाई देंगे और कहेंगे, "साले तू तो हम सबको भूल गया बे..! " क्या जवाब देंगे उन व्यक्तियों को जिन्होंने हमे बड़ा बनाने के लिए कभी ना कभी कुछ न कुछ दिया हो?
अपनी जिंदगी में हम चाहे कितना भी पैसा कमाये, चाहे जितने भी बडे पद पर काम करे, लेकिन मैं समझता हूं के उस success का गर्व हमारे परिवार को, दोस्तो को न हो तो वह success किसी काम की नही. लाख रुपया कमाये लेकिन मा बाप को चार पैसो के कपड़े ना खरीद सके उस कमाई पर लानत होनी चाहिए. अगर वह पद और पैसा हमारे परिवार के चहेरे पर मुस्कान नही ला सकती तो हमे सोचना चाहिए के हम किस दिशा में जा रहे है. क्योंकि हम आज जो कुछ है वह सिर्फ और सिर्फ हमारे माँ बाप के त्याग और समर्पण की वजह से है. और जो बच्चे अपने माँ बाप को भूल जाते है,उन्हें बुढ़ापे पे रोने ओर मजबूर करते है, उनका जीने का सहारा नही बन सकते वह बच्चे किसी के नही हो हो सकते, लानत होनी चाहिए ऐसे बच्चों पर...!
माँ बाप, भाई, बहन, पत्नी, बच्चे और हमेशा साथ देने वाले दोस्त है तो जिंदगी है वरना कुछ नही. कुछ भी नही…!
एम जे
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