Monday, April 22, 2019

राजकीय सत्ता...

राजिकय सत्ता चाहिए, राजकीय सत्ता चाहिए..तभी सब अत्याचार बंद होंगे यह सोचना पूर्णतः मूर्खता है ऐसा मैं मानता हूँ. हमने बुद्ध,बाबासाहेब के आंदोलन से न कुछ सीखा है और न ही कुछ सीखना चाहते है यह सीधे तौर पर दिख रहा है. बौद्धों की ऐतिहासिक धरोहर इतनी वैभवशाली और कीर्तियो से भरी पड़ी होने के बावजूद वर्तमान में हालात कुछ ठीक नही दिखते. जिस तरह उन्हें हर क्षेत्र में उपेक्षित किया जा रहा और जिस तरह वह अपने आपको आंदोलन में सक्रिय रखते है, जिस तरह हजारो संघटन होने के बावजूद अत्याचार कम नही हो रहे है, और साथ ही अंतर्विरोध अपने चरमसीमा पर पहुंच चुका है. ईसे देखते हुवे हमे निश्चत ही स्वपरिक्षण करने की जरूरत है.  सिक्खों के पास कौनसी राजकीय सत्ता है? मुसलमानों के पास कौनसी राजकीय सत्ता है?ईसाईयों के पास कौनसे राज्य है जिनमे वह राजकीय क्षेत्र में सक्रिय है? जैनो की कौनसी पार्टी राजनीति में ताकतवर है? तो फिर इन सभी अल्पसंख्यांको पास ऐसा क्या है जो वह राजनीति में सीधे तौर पर ना होकर भी एक शक्तिशाली अल्पसंख्यांको की तरह देश के हर कोने में, हर क्षेत्र में ताकतवर है और उनपर किसी भी तरह के अन्याय अत्याचार होते नही दिखते? नीचे दिए गये क्षेत्रो में वह एकसंघ है ऐसा मैं मानता हूँ.

1.सामाजिक और धार्मिक एकता
2.आर्थिक सक्षमता
3.स्वावलंबिता
4.हम श्रेष्ठ है यह भावना
5.धार्मिक विषयो में एकसंघता
6.राजकीय क्षेत्र में एकमत
7.समाज के हर तबके को आर्थिक सहायता करके उनकी स्थिति को ऊपर उठने की इच्छा और निश्चित कार्यक्रम.

ऐसे बोहोत से कारण है जिनकी वजह से बौद्धों को छोड़ बाकी अल्पसंख्यांक अपनी एक जगह बनाकर देश मे जी रहे है.यह बात सच है के जिस तेजी से हमने हर क्षेत्र में प्रगति की हैं उसकी दुनिया मे कोई मिसाल नही है लेकिन हमें इस बात को भी स्वीकार करना पड़ेगा के धार्मिक और राजकीय स्थिति उतनी ही गंभीर है . यह कहना के सिर्फ राजनीतिक ताकत ही सब समस्याओ का हल है गलत होगा. क्योंकि सामाजिक एकता और एकसंघता ही राजनीति तय करती है यह बात जब तक हमे समझेगी नही तबतक हम ऐसे ही अपने आपमें और अपने दुश्मनों से और अपने आपसे लड़ते रहेंगे, जानें जाती रहेंगी, आंदोलन होते रहेंगे, मोर्चे निकले जाएंगे और आखिर में शाम को घर मे बैठ कर आंदोलन के ऊपर हमारी प्रतिक्रियाएं देने के अलावा ओर कुछ हाथ मे नही रहेगा.

एम जे

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